Itihas Archives - Pratinidhi https://pratinidhi.org/category/raajput/itihas/ Social media site for Kshatriya Community Sun, 18 Dec 2022 10:29:45 +0000 hi-IN hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.6.2 https://pratinidhi.org/wp-content/uploads/2022/11/cropped-Screenshot-2022-11-14-at-11.51.54-PM-32x32.png Itihas Archives - Pratinidhi https://pratinidhi.org/category/raajput/itihas/ 32 32 212454773 रक्षाबंधन के दूसरे दिन मनाया जाता है भुजरिया पर्व, जानिये इसके बारे में सब कुछ https://pratinidhi.org/%e0%a4%b0%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%82%e0%a4%a7%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%a6%e0%a5%82%e0%a4%b8%e0%a4%b0%e0%a5%87-%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%a8-%e0%a4%ae%e0%a4%a8/ https://pratinidhi.org/%e0%a4%b0%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%82%e0%a4%a7%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%a6%e0%a5%82%e0%a4%b8%e0%a4%b0%e0%a5%87-%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%a8-%e0%a4%ae%e0%a4%a8/#respond Sun, 18 Dec 2022 10:02:14 +0000 https://pratinidhi.org/?p=267 श्रावण मास की पूर्णिमा रक्षाबंधन के अगले दिन भुजरिया पर्व मनाया जाता है। यह पर्व मुख्‍य रूप से बुंदेलखंड का लोकपर्व है। अच्छी बारिश, फसल एवं सुख-समृद्धि की कामना के लिए रक्षाबंधन के दूसरे दिन भुजरिया पर्व मनाया जाता है। इसे कजलियों का पर्व भी कहते हैं। कजलियां पर्व प्रकृति प्रेम और खुशहाली से जुड़ा […]

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श्रावण मास की पूर्णिमा रक्षाबंधन के अगले दिन भुजरिया पर्व मनाया जाता है। यह पर्व मुख्‍य रूप से बुंदेलखंड का लोकपर्व है। अच्छी बारिश, फसल एवं सुख-समृद्धि की कामना के लिए रक्षाबंधन के दूसरे दिन भुजरिया पर्व मनाया जाता है। इसे कजलियों का पर्व भी कहते हैं। कजलियां पर्व प्रकृति प्रेम और खुशहाली से जुड़ा है। आइये जानते हैं इस पर्व के बारे में सब कुछ।

भुजरिया पर्व में लोग एक दूसरे से मिलकर उन्हें गेहूं की भुजरिया देते हैं और इस पर्व की शुभकामनाएं भी देते हैं ये त्योहार अच्छी वर्षा होन, फसल होने और जीवन में सुख समृद्धि की कामना के साथ यह त्योहार मनाया जाता है आपको बता दें कि भुजरिया का त्योहार बुंदेलखंड में सबसे अधिक धूमधाम के साथ मनाया जाता है तो आज हम आपको अपने इस लेख दवारा भुजरिया पर्व से जुड़ी जानकारी प्रदान कर रहे हैं तो आइए जानते हैं।

क्‍या है भुजरिया

जल स्त्रोतों में गेहूं के पौधों का विसर्जन किया जाता है। सावन के महीने की अष्टमी और नवमीं को छोटी – छोटी बांस की टोकरियों में मिट्टी की तह बिछाकर गेहूं या जौं के दाने बोए जाते हैं। इसके बाद इन्हें रोजाना पानी दिया जाता है। सावन के महीने में इन भुजरियों को झूला देने का रिवाज भी है। तकरीबन एक सप्ताह में ये अन्नाा उग आता है, जिन्हें भुजरियां कहा जाता है।

भुजरियों की पूजा का महत्‍व

इन भुजरियों की पूजा अर्चना की जाती है एवं कामना की जाती है, कि इस साल बारिश बेहतर हो जिससे अच्छी फसल मिल सकें। श्रावण मास की पूर्णिमा तक ये भुजरिया चार से छह इंच की हो जाती हैं। रक्षाबंधन के दूसरे दिन इन्हें एक-दूसरे को देकर शुभकामनाएं एवं आशीर्वाद देते हैं। बुजुर्गों के मुताबिक ये भुजरिया नई फसल का प्रतीक है। रक्षाबंधन के दूसरे दिन महिलाएं इन टोकरियों को सिर पर रखकर जल स्त्रोतों में विसर्जन के लिए ले जाती हैं।

यह है भुजरिया की कथा

इसकी कथा आल्हा की बहन चंदा से जुड़ी है। इसका प्रचलन राजा आल्हा ऊदल के समय से है। आल्हा की बहन चंदा श्रावण माह से ससुराल से मायके आई तो सारे नगरवासियों ने कजलियों से उनका स्वागत किया था। महोबा के सिंह सपूतों आल्हा-ऊदल-मलखान की वीरता आज भी उनके वीर रस से परिपूर्ण गाथाएं बुंदेलखंड की धरती पर बड़े चाव से सुनी व समझी जाती है। बताया जाता है कि महोबे के राजा के राजा परमाल, उनकी बिटिया राजकुमारी चन्द्रावलि का अपहरण करने के लिए दिल्ली के राजा पृथ्वीराज ने महोबे पै चढ़ाई कर दी थी। राजकुमारी उस समय तालाब में कजली सिराने अपनी सखी – सहेलियन के साथ गई थी। राजकुमारी को पृथ्वीराज हाथ न लगाने पाए इसके लिए राज्य के बीर-बांकुर (महोबा) के सिंह सपूतों आल्हा-ऊदल-मलखान की वीरतापूर्ण पराक्रम दिखलाया था। इन दो वीरों के साथ में चन्द्रावलि का ममेरा भाई अभई भी उरई से जा पहुंचे। कीरत सागर ताल के पास में होने वाली ये लड़ाई में अभई वीरगति को प्यारा हुआ, राजा परमाल को एक बेटा रंजीत शहीद हुआ। बाद में आल्हा, ऊदल, लाखन, ताल्हन, सैयद राजा परमाल का लड़का ब्रह्मा, जैसें वीर ने पृथ्वीराज की सेना को वहां से हरा के भगा दिया। महोबे की जीत के बाद से राजकुमारी चन्द्रवलि और सभी लोगों अपनी-अपनी कजिलयन को खोंटने लगी। इस घटना के बाद सें महोबे के साथ पूरे बुन्देलखण्ड में कजलियां का त्यौहार विजयोत्सव के रूप में मनाया जाने लगा है। कजलियों (भुजरियां) पर गाजे-बाजे और पारंपरिक गीत गाते हुए महिलाएं नर्मदा तट या सरोवरों में कजलियां खोंटने के लिए जाती हैं। हरियाली की खुशियां मनाने के साथ लोग एक – दूसरे से मिलेंगे और बड़े बुजुर्ग कजलियां देकर धन – धान्य से पूरित क हने का आशीर्वाद देंगे।

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